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आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) सरकार ने खत्म किया दो से अधिक बच्चों वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता नियम
आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) सरकार ने सोमवार को आंध्र प्रदेश पंचायत राज (संशोधन) विधेयक, 2024 और आंध्र प्रदेश नगर पालिका कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित करते हुए, स्थानीय निकाय चुनावों में दो से अधिक बच्चों वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता का नियम समाप्त कर दिया है।
तीस साल पहले, मई 1994 में, आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) विधानसभा ने एक संशोधन विधेयक पारित किया था, जिसके तहत ग्राम पंचायत, मंडल प्रजा परिषद और जिला परिषद चुनावों में उम्मीदवारों के लिए दो बच्चों की सीमा अनिवार्य की गई थी। इस प्रावधान का उद्देश्य जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण रखना था। नियम के अनुसार, दो से अधिक बच्चों वाले उम्मीदवार चुनाव लड़ने के अयोग्य माने जाते थे।
मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू लंबे समय से इस नियम को हटाने की वकालत कर रहे थे। उनका मानना है कि परिवार नियोजन की पहले की सफलताओं के बाद अब महिलाओं और परिवारों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है। उन्होंने इसे आर्थिक आवश्यकता करार दिया है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-21 के अनुसार, आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) में महिलाओं (15-49 वर्ष) की कुल प्रजनन दर 1.7 बच्चे प्रति महिला है, जो प्रतिस्थापन स्तर से काफी कम है। NFHS-4 (2015-16) की तुलना में प्रजनन दर में 0.2 बच्चों की कमी आई है।
आंध्र प्रदेश (Andra predesh ) में प्रजनन दर और परिवार नियोजन के आंकड़े
- शहरी क्षेत्रों में प्रजनन दर 1.47 बच्चे प्रति महिला है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 1.78 बच्चे प्रति महिला है।
दोनों ही दरें प्रतिस्थापन स्तर से कम हैं। - 15-49 आयु वर्ग के 77% विवाहित महिलाएं और 74% पुरुष या तो अधिक बच्चे नहीं चाहते, पहले से ही नसबंदी करा चुके हैं, या उनके जीवनसाथी नसबंदी करा चुके हैं।
- जो महिलाएं और पुरुष और बच्चे चाहते हैं, उनमें से 22% महिलाएं और 26% पुरुष अगले बच्चे के लिए कम से कम दो साल रुकना चाहते हैं।
- 91% महिलाएं और 86% पुरुष आदर्श परिवार के लिए दो या कम बच्चों को सही मानते हैं।
ANDHRA PRADESH 2 CHILD POLICY
आंध्र प्रदेश (Andra predesh ) में बदलते कानून और समावेशी शासन
सरकार का कहना है कि गिरती प्रजनन दर, जनसंख्या स्थिरीकरण और बदलती सामाजिक-आर्थिक स्थितियां इस नियम को अप्रासंगिक और प्रतिकूल बना रही थीं। इसलिए जनसंख्या नियंत्रण के लिए बनाए गए प्रावधानों को हटाना जरूरी हो गया।
यह समावेशी शासन को बढ़ावा देगा, वर्तमान सामाजिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करेगा, और वैश्विक मानकों व जनसांख्यिकीय रुझानों के साथ मेल खाएगा।
यह संशोधन विधेयक राज्य की जनसंख्या नीति और बदलते आर्थिक व सामाजिक दृष्टिकोण के अनुकूल है, जिससे स्थानीय शासन को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाया जा सकेगा।
आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) और अन्य दक्षिणी राज्यों के लोगों को मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने अधिक बच्चे पैदा करने का सुझाव दिया है। उन्होंने बढ़ती उम्र वाली जनसंख्या के खतरों को लेकर चिंता जताई।
नायडू ने अक्टूबर में कहा, “हालांकि हमारे पास 2047 तक जनसांख्यिकीय लाभ है, लेकिन दक्षिण भारत, विशेषकर आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) में उम्रदराज़ आबादी के संकेत पहले से दिखने लगे हैं।”
उन्होंने चेतावनी दी कि जापान, चीन और कुछ यूरोपीय देशों जैसे कई देश बड़ी बुजुर्ग आबादी के कारण संघर्ष कर रहे हैं। उनकी तुलना में भारत को पहले से तैयारी करने की आवश्यकता है।
गिरती प्रजनन दर, जनसंख्या स्थिरीकरण और बदलती सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण, सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए बनाए गए नियमों को अप्रासंगिक और नुकसानदेह माना। सरकार के अनुसार,
“इन प्रावधानों को समाप्त करने से समावेशी शासन को बढ़ावा मिलेगा, समकालीन सामाजिक मूल्यों को प्रतिबिंबित किया जाएगा और वैश्विक मानकों व जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियों के साथ तालमेल स्थापित होगा।”
गिरती कुल प्रजनन दर (TFR) को देखते हुए, सरकार ने आंध्र प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1994, आंध्र प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1965, और नगर निगम अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिए विधेयक लाए। इन संशोधनों के अनुसार, अब दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति भी स्थानीय निकाय चुनावों में भाग लेने के योग्य होंगे।
इस कदम से सरकार का उद्देश्य न केवल बदलते जनसांख्यिकीय ढांचे को संतुलित करना है, बल्कि समावेशी विकास और आधुनिक सामाजिक आवश्यकताओं के साथ सामंजस्य स्थापित करना भी है।